Last modified on 20 अक्टूबर 2017, at 13:44

जीवन, मरणोत्तर एक क्रियाशील शब्द है / सुरेश चंद्रा

केतकी!

कल फिर
गुलदान छूट गिरा तुमसे
घर बिखरा ही रह गया
कपड़े गुनसाम गँधाते रहे
रोटियाँ जला ली तुमने

क्या सोचती रहती हो?
क्या खदबदाता है अंदर?

अब, जब-जब धधकना
अश्रुओं की आँच मद्धम कर लेना
जब-जब बिखरना
सँवारना, मन की बिगड़ी रंगोली
घर की सूनी देहरी पर
जलना तुम, दीये की बोली

ये सवाल, अब बदल दो
मैं कौन, क्यूँ, कहाँ, किसलिए
कहो
मैं वही, यूँ, वहीं, इसलिए

साँस लेना पल-पल का उद्देश्य है
समझौते और समझावन लिये

जीवन, मरणोत्तर एक क्रियाशील शब्द है