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04:26, 21 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राबर्ट ब्लाई
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<Poem>
हाथों में हाथ थामना किसी प्रिय का
आप पाते हैं कि वे नाजुक पिंजरे हैं...
गा रहे होते हैं नन्हे पंछी
हाथ के निर्जन मैदानों
और गहरी घाटियों में
'''अनुवाद : मनोज पटेल'''
</poem>
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