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14:03, 21 नवम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजीव भरोल
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
हैरान है दरिया ये मंज़र देख कर
अपनी तरफ आता समंदर देख कर
अमनो अमां पर हो रही हैं बैठकें
बच्चे बहुत खुश हैं कबूतर देख कर
गुज़रा हुआ इक हादसा याद आ गया
फिर से उन्हीं हाथों में खंजर देख कर
अबके बरस बादल भी पछताए बहुत
सैलाब में डूबे हुए घर देख कर
पंछी बिना दाना चुगे ही उड़ गए
आँगन में कुछ टूटे हुए पर देख कर
दिल को तुम्हारी याद आई यक ब यक
पहलू में इक शीशे के, पत्थर देख कर
</poem>