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10:16, 28 नवम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महाप्रकाश
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<poem>
जुलूस और दंगा हैं पहरेदार
शहर में बंद है खिडकी
और दरवाजों के किवाड
भीतर शतरंज की चाल
युद्ध का पूर्वाभ्यास
बाहर भूख से चिल्लाते लोग
जनतंत्र के जीवंत इश्तहार।
</poem>