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{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
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|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
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<poem>
अपनों से युद्ध अन्ततः
अपने आप से युद्ध होता है जिसमें
तैयार करना होता है स्वयं को
एक हृदयविदारक बंटवारे के लिए।
एक हिस्सा धारदार
निरंतर आक्रामक मुद्रा में
दूसरा उसी के बचाव में जिसके साथ
आप होते हैं युद्धरत।

एक ओर होती अंहकार की
हठीली सत्ता
दूसरी ओर प्रेम को समर्पित
निहत्थी जनता।
</poem>
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