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हम बहुत कायल हुए हैं / मनोज जैन 'मधुर'
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20:10, 4 दिसम्बर 2017
हम बहुत कायल हुए हैं
आपके व्यवहार के।
आँख को सपने
दिखाये
दिखाए
प्यास को पानी ।
इस तरह होती रही
शब्द भर टपका दिए दो
होंठ से आभार के।
******
लाज को घूँघट दिखाया
पेट को थाली।
आप तो भरते रहे पर
हम हुए
खाली।
ख़ाली।
पीठ पर कब तक सहें
चाबुक समय की मार के।
*****
पाँव को बाधा दिखाई
हाथ को डण्डे।
दे दिए बैनर किसी ने
दे दिए
झन्डे।
झण्डे।
हो सके कब जीत के हम
हो सके कब हार के।
</poem>
अनिल जनविजय
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