भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम बहुत कायल हुए हैं / मनोज जैन 'मधुर'
Kavita Kosh से
हम बहुत कायल हुए हैं
आपके व्यवहार के।
आँख को सपने दिखाए
प्यास को पानी ।
इस तरह होती रही
हर रोज़ मनमानी।
शब्द भर टपका दिए दो
होंठ से आभार के।
लाज को घूँघट दिखाया
पेट को थाली।
आप तो भरते रहे पर
हम हुए ख़ाली।
पीठ पर कब तक सहें
चाबुक समय की मार के।
पाँव को बाधा दिखाई
हाथ को डण्डे।
दे दिए बैनर किसी ने
दे दिए झण्डे।
हो सके कब जीत के हम
हो सके कब हार के।