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07:06, 23 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
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<poem>
अजीब नुक़्ते कमाल नुक़्ते
वबाल दुनिया वबाल नुक़्ते
करेंगे बे-शक़ करेंगे हक़ से
अज़ीयतों पर सवाल नुक़्ते
तिरी कमी सी खले है बेहद
न कर हमें यों निढाल नुक़्ते
तिरी वजह से कसा-कसी है
कराएगा क्या ज़िदाल नुक़्ते
कसम से बेहद बुरा हुआ ये
हुआ किधर है हलाल नुक़्ते!
कहीं न आदत ख़राब कर दें
नवाज़िशों को सँभाल नुक़्ते
‘बर-ए-लबे-जां* प दाएं बाज़ू'
ग़ज़ब दिखे है तू माल,नुक़्ते!
न मैं ग़ज़लगो न तू ही शाइर
उसी का सब है जमाल नुक़्ते
बताएं तुझको तो क्या बताएं
किया किसी ने वो हाल नुक़्ते!
</poem>