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13:32, 23 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
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<poem>
ऐसा भी क्या सस्ता होना
सबसे ही वाबस्ता होना
कुछ सड़कों की आदत में है
सोये-सोये खस्ता होना
बच्चा होना तो आसाँ है
दूभर तो है बस्ता होना
मंज़िल होना काम बड़ा है
या के बोलो रस्ता होना?
गुल ही,गुल है,गुलदस्ते से
बेजा है गुलदस्ता होना
दुनिया पत्थर हो बैठी है
आहों सीखो जस्ता होना
ख़ंजर होना सबसे पीछे
सबसे आगे दस्ता होना
</poem>