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{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
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|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
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<poem>
इतना कमजोर नहीं होता
जो खींचने पर टूट जाए।
कसकर खींचते-खींचते अंगुलियां ही
हो जाती रक्त से लथपथ
और मुट्ठियों की सख्त पकड़ से
फिसल जाता रक्त-रंजित धागा।

क्षमा करना बाबा रहीम!
इस्पात के तार की तरह
अटूट होता है
प्यार का धागा
जो खींचने पर कर देता लहूलुहान
पर टूटता कभी नहीं।
</poem>
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