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जल कण / कैलाश पण्डा

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|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
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<poem>
जाग उठा
जल कण
नदी के अथाह जल स्त्रोत में,
बहता हुआ बोला
बहता हूं
बहता रहा हूं
बहता रहूंगा कब तक
हे विधाता
कब क्या गति होगी मेरी
अहा!
जाग उठा
जाग उठा जल कण।

</poem>
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