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झंकृत हो / कैलाश पण्डा

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|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
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<poem>
जीवन का हर क्षण
झंकृत हो
हो तब तन-मन अरू
अंतः प्रकृति भी तार-तार
तब जीवन की
प्रत्येक खुशियां लुटा देना
स्वप्र संजोना तब बारम्बार
तुम देखना उठेगी बयार
खिलेंगे पुष्प, चहुं ओर
भंवर के आंचल में
मचलेगा तन
उद्वेलित होगा तब कण-कण ।
</poem>
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