बात हो रही है अब इल्म के ज़ख़ीरों की
लामकां लामकाँ मकीनों की, खुशनुमा जज़ीरों सूफियों की पीरों की बात हो रही है अब कर रहे हैं हम इल्म के ज़ख़ीरों की
हर ख़ुशी क़दम चूमे कायनात की उसके
जिस्म की सजावट में रह गए उलझकर जो
रूह तक नहीं पहुँची फ़िक़्र उन हक़ीरों की
राहे हक़ पे चलकर ही मंज़िलें मिलेंगी अब
है नहीं जगह कोई बेसबब नज़ीरों की
हाथ ही में कातिब ने लिख दिया है मुस्तकबिल
इल्म हो तो जिसे पढ़ लेना ले ये जुबां ज़बां लकीरों की राहे हक़ पे चलकर ही मंज़िलें मिलेंगी अबहै नहीं जगह कोई बेसबब नज़ीरों की
देख ले 'रक़ीब' आकर गर नहीं यकीं तुझको इक गुनाह से पहले जिंदगी असीरों की
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