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महानगर / कुमार मुकुल
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18:40, 29 जून 2008
वैसी ही गुंजान हैं
चि़यों
चिड़ि़यों
से-कि किरणों से
व भीगी खुशबू से
तन्वंगी
और तुम्हारी
स्त्रियां
स्त्रियाँ
कैसी रंगीन राख पोते
भस्म
नजरों
नज़रों
से देखती
गुजरती
गुज़रती
जाती हैं।
अनिल जनविजय
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