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महानगर / कुमार मुकुल

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वैसी ही गुंजान हैं
चि़यों चिड़ि़यों से-कि किरणों से
व भीगी खुशबू से
तन्वंगी
और तुम्हारी स्त्रियांस्त्रियाँ
कैसी रंगीन राख पोते
भस्म नजरों नज़रों से देखती
गुजरती गुज़रती जाती हैं।
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