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समझदारी / कुमार अजय

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<poem>
म्हैं करयो प्रेम
वां अबोध दिनां
जद कै
नीं ठाह हौ
प्रेम पेटै घणौ-कीं म्हनै

वां-ई अणसमझ छिणां मांय
म्हैं सिरजी
घणी-सारी प्रेम कवितावां
कविता री समझ-ई
अबार ई नीं है घणी
पण वीं बगत तौ नीं ही जाबक ई

अर अबै जदकै
नीसरयो हूं चिन्होक
प्रेम रै मारग सूं
अर कीं थोड़ी-घणी
समझी है कविता ई
नीं तौ हुवै प्रेम
अर नीं ई
सिरजीज्यै है
कविता कोई।

</poem>
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