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डर / कुमार अजय

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<poem>
हुयसी वौ मोटौ डूंगर
थारी निजर मांय
पण बूझ किणी छिण
वीं रै मांयलै सूं
कित्तौ डर है वठै
म्हारै भीतरली
चिन्हीक-सी बारूद रौ।
</poem>
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