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सर पर है साया नहीं ,भटकें बाल अनाथ।मजदूरी को हैं विवश, नन्हे- नन्हे हाथ।।
डाँट-डपट चुप रह सुने, धोता है कप प्लेट।
गाड़ी, शीशे पोंछते, पाते हैं दुत्कार।
जिनपर टिका भविष्य है, हाय! वही लाचार।।
ईंटें-पत्थर ढो रहे, नन्हे- नन्हे हाथ।
कील हथौड़ी दी थमा, फेंकी छीन किताब।
कुछ पैसे को बाप ने, रौंदे नन्हे ख्वाब।।ख़्वाब।।
छोटे बच्चे कर रहे, जब मजदूरी आज।
तब 'गरिमा' कैसे कहें, विकसित हुआ समाज।।
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