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09:55, 1 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[मीठेश निर्मोही]]
|अनुवादक=
|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
थारा ई थारी बोली लगावै
नड़ अर फड़ रै ओळावै!
बेचै थारौ मांन-गुमांन
संस्क्रति री छिब
भांत-भांत री
इदक
कळा जात-जात री
अर
चमगूंगा रै उनमांन ऊभौ
नीं बोलै
नीं चालै
थूं !
</poem>
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