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|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
ख़ुदा के साथ यहाँ राम हमनिवाला है।
ये राजनीति का सबसे बड़ा मसाला है।

जो आपके लिये मस्जिद है या शिवाला है।
वो मेरे वासिते मस्ती की पाठशाला है।

सभी रकीब हुये ख़त्म आपके, अब तो,
वो आप ही को डसेगा मियाँ, जो पाला है।

छुपा के राज़ यक़ीनन रखा है दिल में कोई,
तभी तो आप के मुँह पे बड़ा सा ताला है।

लगे जो आपको बासी व ग़ैर की जूठन,
वही तो देश के मज़्लूम का निवाला है।
</poem>
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