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|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
कुछ पलों में नष्ट हो जाती युगों की सूचना।
चन्द पल में सैकड़ों युग दूर जाती कल्पना।

स्वप्न है फिर सत्य है फिर है निरर्थकता यहाँ,
और ये जीवन उसी में अर्थ कोई ढूँढ़ना।

हुस्न क्या है एक बारिश जो कभी होती नहीं,
इश्क़ उस बरसात में तन और मन का भीगना।

ग़म ज़ुदाई का है क्या सुलगी हुई सिगरेट है,
याद के कड़वे धुँएँ में दिल स्वयं का फूँकना।

प्रेम और कर्तव्य की दो खूँटियों के बीच में,
ज़िंदगी की अलगनी पर शाइरी को साधना।
</poem>
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