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09:28, 11 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार सौरभ
|संग्रह=
}}
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<poem>
शहर से होकर आए हो पर
रहे वही के वही गंवार
थक गयी ताक ताक कर अँखियाँ
तुम पत्थर क्या समझो प्यार !
पढ़ने लिखने में डूबे तुम
क्या समझोगे पीड़ पराई
जल जाए सौतन किताब यह
ठेंगे पर तेरी कविताई !!
</poem>