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ठेंगे पर कविताई / कुमार सौरभ
Kavita Kosh से
शहर से होकर आए हो पर
रहे वही के वही गंवार
थक गयी ताक ताक कर अँखियाँ
तुम पत्थर क्या समझो प्यार !
पढ़ने लिखने में डूबे तुम
क्या समझोगे पीड़ पराई
जल जाए सौतन किताब यह
ठेंगे पर तेरी कविताई !!