गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
जब उड़ी नोच डाली गई / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
562 bytes added
,
17:01, 15 अप्रैल 2018
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जब उड़ी नोच डाली गई।
ओढ़नी नोच डाली गई।
एक भौंरे को हाँ कह दिया,
पंखुड़ी नोच डाली गई।
रीझ उठी नाचते मोर पे,
मोरनी नोच डाली गई।
खूब उड़ी आसमाँ में पतंग,
जब कटी नोच डाली गई।
देव मानव के चिर द्वंद्व में,
उर्वशी नोच डाली गई।
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits