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ले गया इश्क़ मुआ आज बयाना मुझसे।
अब ये माँगेगा शब-ओ-रोज़ बकाया मुझसे।
दफ़्न कर दूँगा मैं दिल में सभी अरमाँ लेकिन,
उठ तो जाए तेरे वादों का जनाज़ा मुझसे।
 
दर-ओ-दीवार पे चलने लगीं लाखों फ़िल्में,
खुल गया क्यूँ तेरी यादों का पिटारा मुझसे।
 
जी किया और वो उड़ के गया महबूब के पास,
लाख बेहतर है इक आज़ाद परिंदा मुझसे।
 
आतिश-ए-इश्क़ में जल-जल के नया हो ‘सज्जन’,
कह गया रात यही बात पतंगा मुझसे।
</poem>
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