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तुम्हारा मेरा क्या सम्बन्ध हैमुझे भूल जाना चाहिए था माना,चले नयननिरक्षरतुमको तो याद है-नेह भाषा
वह गढ़ा गया था तुम्हारे द्वारानहीं देखा फिरउन दिनोंसाथ-साथजब सुबह कहीं पहली चिड़िया के गाने से भी पहलेबादल कोईतुम चाहते थे मैं उठूँघूमता रहाऔर देखूँ कि कब से सम्मुख हो तुमइतनी सारी ऋचा लियेसमय चक्र
वह गढ़ा गया था जबतुम्हारे भीतर के आशीर्वादइतना-इतना बरसेकि मेरे धू-धू करते विषादशान्त हो गये सारे वह गढ़ा गया था उस दिन, तुमने जबश्री रंग धामेश्वरी के द्वारमेरे झुके सिर पर हाथ रखमाँ की स्तुति की, स्वर को मिलास्वर से। मैंने वह सब सच मानाऔर पूजा में मिली हल्दी की गाँठ-सासावधानी से माथा छुआ, पल्ले में बाँध लियाअपने मन में ठान लियाकि सुबह उठते हीआँखें तुम्हें देख निर्मल होंगीकान सुनेंगे स्वस्ति वाक् तुम्हारे,पैर उठेंगे जबमन्दिर के सोपान चढ़ेंगेहाथों में कुमकुम रंजित पुष्पतुम्हारे और मेरे-संग-संग अवलोक्य माम् अकिंचनानाम्प्रथमं प्रात्रम् अकृत्रिमं दयायाःप्रथमं पात्रमं् अकृत्रिमं दयायाःकहेंगेपर आज यह शून्य-अब मेरीसीमित शब्दावली मेंकोई अन्य शब्द भी तो नहींजो व्यक्त कर सके कितुम्हारे और मेरे सरक आया हमारे बीच यदि शून्य नहींतो क्या है- यह शून्य मुझसे कह रहा हैकि वह सब यदि मुझे भूला नहींतो भूल जाना चाहिए अवश्य-एकदमअभी,आज ही!विश्व आधा
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