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सूना घर/ भावना कुँअर

644 bytes added, 22:33, 10 जुलाई 2018
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सूखती नहींआँखों से नमी अबनाकाम हुईहर कोशिश यहाँ।समझी नहींमैं हुई क्यों अकेली?घोंटा था गलाअरमानों का मैंने पर तुमकोसब-कुछ था दिया,जाने फिर क्यों हमें मिली है सज़ाहो गया घरएकदम अकेलान महकताअब फूल भी कोईसूना है सबन पंछियों- सा अबआँगन चहकता।
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