भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूना घर/ भावना कुँअर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सूखती नहीं
आँखों से नमी अब
नाकाम हुई
हर कोशिश यहाँ।
समझी नहीं
मैं हुई क्यों अकेली?
घोंटा था गला
अरमानों का मैंने
पर तुमको
सब-कुछ था दिया,
जाने फिर क्यों
हमें मिली है सज़ा
हो गया घर
एकदम अकेला
न महकता
अब फूल भी कोई
सूना है सब
न पंछियों- सा अब
आँगन चहकता।