गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
पुरानी पीर / भावना कुँअर
488 bytes added
,
22:40, 10 जुलाई 2018
<poem>
पुरानी पीर
हर गई मन का
सारा ही धीर।
दौड़ती थी पहले
तेज़ कलम
रचती थी कितने
नूतन छंद
अब हो गई बंद।
उकेरती थी
कूँची कितने चित्र
एक से एक
लगते थे विचित्र।
अब तो बस
बिखेरती है रंग
अज़ब औ बेढंग।
</poem>
</poem>
वीरबाला
4,949
edits