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|संग्रह=सावण फागण / लक्ष्मीनारायण रंगा
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<poem>
चौफेर घिरी ऊंची दीवारा
कूण तोड़ै काली मीनारां

सगळै सागर कांई छांई
कांई हुयसी कांकरी मार्यां

आदमखोर ओ जुग बणग्यो
अठै मांस रा सै बिणजारा

सोने खातर बळै सीतावां
कांई करै जनक दुखियारा

मिनख जै‘र रो बण्यो सौदागर
डरता फिरै सांप बिचारा

गूंगी बस्ती है बोळा लोग
कुण सुणैं दुख भरी पुकारां

जीवता मिनख तो मरै भूखा
भोग लगावै देवता सारा

मिनख सांप री पै‘री कांचळी
नागा हुया सै नाग बिचारा
</poem>
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