भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चौफेर घिरी ऊंची दिवारां / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
चौफेर घिरी ऊंची दीवारा
कूण तोड़ै काली मीनारां
सगळै सागर कांई छांई
कांई हुयसी कांकरी मार्यां
आदमखोर ओ जुग बणग्यो
अठै मांस रा सै बिणजारा
सोने खातर बळै सीतावां
कांई करै जनक दुखियारा
मिनख जै‘र रो बण्यो सौदागर
डरता फिरै सांप बिचारा
गूंगी बस्ती है बोळा लोग
कुण सुणैं दुख भरी पुकारां
जीवता मिनख तो मरै भूखा
भोग लगावै देवता सारा
मिनख सांप री पै‘री कांचळी
नागा हुया सै नाग बिचारा