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16:37, 26 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[लक्ष्मीनारायण रंगा]]
|अनुवादक=
|संग्रह=आंख ई समझै / लक्ष्मीनारायण रंगा
}}
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<poem>
मिनख देही
माटी सूं है उपजी
राख समासी
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आखरी सांस
निकळै थारै नाम
अमर हुयो
{{KKBR}}
नदी री धार
सागै-सागै बै, नीं तो
डूब जावै ला
</poem>
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