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09:26, 27 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[लक्ष्मीनारायण रंगा]]
|अनुवादक=
|संग्रह=आंख ई समझै / लक्ष्मीनारायण रंगा
}}
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<poem>
मा थारी आंख्यां
सूरज चांद म्हारा
दिन‘र रात
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चैखट तोड़
मुगत हुसी चित्र
अेक दिन तो
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अकास सुण
जै हूं नीं तो कांईं
थारो वुजूद
</poem>
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