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हाइकु 181 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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मा थारी आंख्यां
सूरज चांद म्हारा
दिन‘र रात
चैखट तोड़
मुगत हुसी चित्र
अेक दिन तो
अकास सुण
जै हूं नीं तो कांईं
थारो वुजूद