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<poem>
पारू झूठ न बोल। बोल हे पारू झूठ न बोल।
प्रेम बिना क्वी रै नि अछूतो घिंडुड़ि बणांदी घोल।।
बाच न सान न चुप-चुप हेरिकि आंख्यूं से ना बोल।
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