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|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
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<poem>
जान रहते ही मिट गया होता
दर्द गर क़ाबिले शिफ़ा होता

बारे-दिल कुछ तो कम हुआ होता
काश अश्क़ों का सिलसिला होता

रास्ता जिस पे उम्र गुज़री है
काश मंज़िल का रास्ता होता

राहे मंज़िल पे रौशनी होती
साथ गर आपका मिला होता

आपकी याद दिल में रहती है
वरना दिल को जला दिया होता।

</poem>
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