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14:34, 26 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
तेरी नज़रे इनायत हो जाये
हो जाये मेरा दिल रह जाये
तू लब से न कह कुछ तेरी खुशी
हां देख नज़र कुछ कह जाये।
कुछ और सितम कुछ और सितम
ये दिल है हमारा दिल आखिर
बेदादगरी को तेरी ये
मुमकिन है के हंस कर सह जाये।
तेरी याद निकल जाये दिल से
मुश्किल है बहुत नामुमकिन है
ये दाग़ नहीं जो धुल जाये
थे अश्क़ नहीं जो बह जाये।
</poem>