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तेरी नज़रें इनायत हो जाये / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
Kavita Kosh से
तेरी नज़रे इनायत हो जाये
हो जाये मेरा दिल रह जाये
तू लब से न कह कुछ तेरी खुशी
हां देख नज़र कुछ कह जाये।
कुछ और सितम कुछ और सितम
ये दिल है हमारा दिल आखिर
बेदादगरी को तेरी ये
मुमकिन है के हंस कर सह जाये।
तेरी याद निकल जाये दिल से
मुश्किल है बहुत नामुमकिन है
ये दाग़ नहीं जो धुल जाये
थे अश्क़ नहीं जो बह जाये।