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06:14, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
|अनुवादक=
|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हर किसी की आँख का सपना है घर
हर किसी को कब मगर मिलता है घर
काट देते ज़िंदगी फ़ुटपाथ पर
बेघरों के ख़्वाब में पलता है घर
प्यार बिन बुनियाद कच्ची रह गई
नफ़रतों की आग में जलता है घर
हो दुआएं जब बड़ों की साथ में
फूलताफलता सदा रहता है घर
आपसी विश्वास जब से हट गया
क्या बताएं दोस्तो कैसा है घर
</poem>