1,384 bytes added,
04:21, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
|अनुवादक=
|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
विषमता से भरी क्यूँ ज़िंदगी है
यही इक बात मन को सालती है
जहाँ सूरज ने मेरा साथ छोड़ा
चराग़ो ं ने दिखाई रौशनी है
वो इक नन्हीं सी चिड़िया उड़ रही जो
मेरी पोती सी नटखट चुलबुली है
जिसे सब कोसते रहते हैं हरदम
मुझे उस ज़िंदगी से आशिक़ी है
कई घाटों का पानी पी चुका हूँ
मगर बाक़ी अभी भी तिश्नगी है
न जाने खेल कब यह ख़त्म होगा
अज़ल से चल रही रस्साकशी है
मेरी तन्हाईयो ं मे ं साथ मेरे
क़लम है और मेरी डायरी है
हज़ारों लोग उसको जानते हैं
मगर ‘अज्ञात’ ख़ुद से अजनबी है
</poem>