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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
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|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
}}
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<poem>
मुफ़लिसों पर हँसा नहीं करते
हम तो ऐसी ख़ता नहीं करते

चांदनी कह रही है हंस हंस कर
चांद सब को मिला नहीं करते

जाने किस दम ज़मीं पे आ जाएं
इतना ऊँचा उड़ा नहीं करते

झूट, धोका, फ़रेब, मक्रो-रिया
लोग दुनिया में क्या नहीं करते

जिनकी ख़ानाबदोशी फ़ितरत है
वो कहीं भी बसा नहीं करते

बंधुआ मज़दूर को कभी मालिक
हक़्क़े- मह्नत अदा नहीं करते
</poem>
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