बुरा हो नींद का टूटी कि टूट जाते हैं।<BR><BR>
हम ठहाकों की जगह सिर्फ मुस्कुराते हैं।<BR><BR>
षोर के शहर में आवाज़ यूँ उठाते हैं।<BR><BR>
वो आसमान है उसको ग़ुरूर सूरज का <BR>
हम अपने ख़याल के बादल से छत बनाते हैं।<BR><BR>
कहाँ-कहाँ की लिए रेत उफनता दरिया<BR>
जिन्हें पता है वही लोग पुल बनाते हैं।<BR><BR>
बिके नहीं है, बिकेंगे भी नहीं, कुछ करिए<BR>
अजीब आइने हैं दाग़ भी दिखाते हैं।<BR><BR>
जितनी होती थी वजह बाल गंवानें की कभी<BR>
उससे कुछ कम पे यहाँ लोग सर गंवाते हैं।<BR><BR>
हमारे ख़याल रोशनी में नहा लेते हैं<BR>
किसी की राह में जब भी दिया जलाते हैं।<BR><BR>