{{KKCatGhazal}}
<poem>
मुस्कराते हुए चेहरे हसीन लगते हैंवरना इन्सान भी जैसे मशीन लगते हैं।हैं
उन से उम्मीद थी लोगों के काम आयेंगेदूसरों की खुशी, ग़म में शरीक जो होते परवही क़ाबिल, वो अपने ग़ुरूर वही मुझको ज़हीन लगते हैं जो हवाओं का साथ पा के अधीन फिर निकल जातेऐसे बादल भी मुझे अर्थहीन लगते हैं।हैं
जो हवाओं का साथ पा उनसे उम्मीद थी लोगों के निकल जाते हैंकाम आयेंगेऐसे बादल भी मुझे अर्थहीन पर, वो अपने ग़ुरूर के अधीन लगते हैं।हैं
हुस्न की बात नहीं, बात है भरोसे कीधूल में खेलते बच्चे को उठाकर देखेाफूल से ख़ार कहीं बेहतरीन अपने बच्चे तो सभी को हसीन लगते हैं।हैं
जेा क़िताबें हुस्न की बात नहीं इन्सानियत का पाठ पढ़ेवही आलिम, वही मुझको ज़हीन लगते हैं। धूल में खेलते बच्चे को उठाकर देखेाबात है भरोसे कीअपने बच्चे तो सभी को हसीन फूल से ख़ार कहीं बेहतरीन लगते हैं।हैं
</poem>