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06:21, 22 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|अनुवादक=
|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जैसे चाकू होता नहीं हिंस्र हमेशा
शब्द नहीं होते अमूर्त हमेशा
चाकू का इस्तेमाल करते हैं फलों को छीलने के लिए
आलू गोभी या इतर सब्ज़ियाँ काटते हैं चाकू से ही
कभी-कभी ग़लत इस्तेमाल से चाकू बन जाता है स्क्रू ड्राइवर या
डिब्बे खोलने का यन्त्र
चाकू होता है मौत का औज़ार हमलावरों के हाथ
या उनसे बचने के लिए उठे हाथों में
कोई भी चीज़ हो सकती है निरीह और खू़ँखार
पुस्तक पढ़ी न जाए तो होती है निष्प्राण
उठा कर फेंकी जा सकती है किसी को थोड़ी सही चोट पहुँचाने के लिए
बरतन जिसमें रखे जाते हैं ठोस या तरल खाद्य
बन सकते हैं असरदार जो मारा जाए किसी को
शब्द भी होते हैं ख़तरनाक
सँभल कर रचे कहे जाने चाहिए
क्या पता कौन कहाँ मरता है
शब्दों के ग़लत इस्तेमाल से।
</poem>