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20:27, 23 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मधु शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
स्याही यह घेर रही
अंधड़ यह टेर रहा
रक्तिम अंदेशे हैं धूल-भरे
भटक रहा अँधियारा वर्तुल
अपने से डरा हुआ
मैं छिप कर सूने के रंगों में
खड़ी हुई बेडर, बेख़ौफ़
तुम्हारे आने को हेर रही।
</poem>