स्याही यह घेर रही
अंधड़ यह टेर रहा
रक्तिम अंदेशे हैं धूल-भरे
भटक रहा अँधियारा वर्तुल
अपने से डरा हुआ
मैं छिप कर सूने के रंगों में
खड़ी हुई बेडर, बेख़ौफ़
तुम्हारे आने को हेर रही।
स्याही यह घेर रही
अंधड़ यह टेर रहा
रक्तिम अंदेशे हैं धूल-भरे
भटक रहा अँधियारा वर्तुल
अपने से डरा हुआ
मैं छिप कर सूने के रंगों में
खड़ी हुई बेडर, बेख़ौफ़
तुम्हारे आने को हेर रही।