694 bytes added,
04:07, 27 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ज़िन्दगी जब तलक तमाम न हो
रास्ते में कहीं क़याम न हो
घर में रिश्ते बिखर चुके लेकिन
दुश्मनों में ख़बर ये आम न हो
कुछ ताअल्लुक़ नहीं, नहीं न सही
ख़त्म लेकिन दुआ सलाम न हो
हंसते हंसते चलो जुदा हो जाएं
आंसुओं पर सफ़र तमाम न हो
</poem>