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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
कुछ फूल जो बहार में खिलते कभी नहीं
हैं लोग जो जज़्बात में बहते कभी नहीं

चीरा न वक्त पर तो जहरबाद बन गया
ये दाग़ हैं जो जिस्म से मिटते कभी नहीं

हमदर्द हमारे भी हैं हिन्दोस्तान में
ये बात और साथ वह देते कभी नहीं

खुशबू भरा चमन हो यहाँ फूल भी खिलें
हम लोग दुश्मनों से तो डरते कभी नहीं

बलिदान हो रहे जो मातृभूमि के लिये
हो जाते अमर लोग वह मरते कभी नहीं

</poem>