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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
चाँदनी चाँद के पास आ जाती है
वो अँधेरों से दामन बचा जाती है

है चली जब हवा खुशबुओं से भरी
आ कली हर चमन की खिला जाती है

देखते ही तुझे एक प्यारी हँसी
लब पर मेरे तबस्सुम सजा जाती है

वस्ल की चाह दम तोड़ने है लगी
याद तेरी मुझे आ जिला जाती है

बेबसी हिज्र की अब सताने लगी
आँख दोनों मेरी डबडबा जाती है

</poem>