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05:34, 19 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
तुम्हारे बिन भटकते हैं अकेले रहगुज़ारो में
चले आओ की तुम बिन जी नहीं लगता बहारों में
वही हैं फूल कलियाँ औ तितलियाँ भ्रमर भी वे ही
रही पर अब न वह रंगत जो थी पहले नजारों में
बदन अब भी सिहरता है छुअन पा बूँद बरखा की
रही लेकिन नहीं वह सनसनी जो थी फुहारों में
तुम्हारी याद अब भी दिल के कोने में मचलती है
न विश्वसनीयता बाक़ी रही है अब सहारों में
मचलती आज भी लहरें हैं अपनी ही रवानी में
नही पाकीज़गी है किन्तु नदियों के किनारों में
</poem>