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05:37, 19 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
वक्त के साथ ढलना हमें आ गया
देख के ग़म पिघलना हमें आ गया
लड़खड़ाने लगे रास्तों पर मगर
ठोकरों से सँभलना हमें आ गया
लोग काँटे बिछाते डगर में रहे
उनसे बच के निकलना हमें आ गया
जिंदगी भर तपे कर्म की आँच में
शाम के साथ ढलना हमें आ गया
एक संकल्प की ली कुदाली उठा
भाग्य अपना बदलना हमें आ गया
</poem>